जम्मू,
जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित बनने के बाद जम्मू में पहली बार अमर उजाला से खास बातचीत में डॉ. वैद हर मुद्दे पर खुलकर बोले। इस दौरान उन्होंने कंधार कांड से जुड़ी बातों पर भी बेबाकी से प्रतिक्रिया दी। वहीं आतंकवाद की टूटती कमर पर उनका कहना है कि आतंकवाद और अलगाववाद अब अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है। कारण, एक तो कश्मीरी युवा इसकी हकीकत समझ चुका है। दूसरा अनुच्छेद 370 खत्म होने से इनका हौसला पूरी तरह पस्त हो गया है। केंद्र ने फैसले के बाद संचार नेटवर्क ठप कर बेहतरीन काम किया, क्योंकि इससे पाकिस्तान को कश्मीरी युवाओं में कट्टरता फैलाने का मौका नहीं मिल सका।
पूर्व डीजीपी कहते हैं कि आतंकी अजहर मसूद को कंधार कांड के दौरान छोड़े जाने का मलाल है। वह उस समय जम्मू के डीआईजी थे और अजहर मसूद कोट भलवाल सेंट्रल जेल में बंद था। उसे लेने के लिए दिल्ली से स्पेशल प्लेन टेक्निकल एयरपोर्ट आ चुका था। उसे वहां तक पहुंचाने की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी गई थी। उस समय उन्होंने दिल पर पत्थर रखकर उसे एयरपोर्ट तक पहुंचाया था। यह बात मैं आज भी नहीं भूल पाता हूं।
पुलिस विभाग में 34 साल से अधिक समय तक अलग-अलग पदों पर रहे डॉ. वैद हाल ही में सेवानिवृत्त हुए हैं। विलेज डिफेंस कमेटी (वीडीसी) और कम्युनिटी पुलिसिंग शुरू करने वाले डॉ. वैद दावे से कहते हैं कि जम्मू-कश्मीर पुलिस देश की सबसे अच्छी और अनुशासित फोर्स है। बावजूद इसके कि उसे आतंकियों और पत्थरबाजों से लड़ने के साथ ही समाज के एक तबके से भी जूझना पड़ता है। आतंकियों की ओर से उन पर चार बार हमला किया गया। एक हमले में वह एक हाथ की एक उंगली कट गई। सिर में चोट लगने के कारण ऑपरेशन कराना पड़ा। उनके डीजीपी रहते हुए पहली बार अलगाववादियों पर शिकंजा कसा गया। बाग में एनआईए ने छापेमारी कर अलगाववादियों की कारगुजारियां ही उजागर नहीं की, उनकी गिरफ्तारी भी की। पूर्व डीजीपी कहते हैं कि पुलिस की नौकरी में लगातार राजनीतिक नेतृत्व का दबाव झेलना पड़ता है। उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. फारूक अब्दुल्ला, मुफ्ती मोहम्मद सईद, गुलाम नबी आजाद, उमर अब्दुल्ला व महबूबा मुफ्ती के साथ काम किया। कई बार दबाव आए लेकिन उन्होंने सभी को टैकल किया और फैसले नहीं बदले। इसके साथ ही वह एक घटना बताते हुए अफसोस भी जताते हैं।उनके मुताबिक, पाकिस्तानी सेना जब हमारे जवानों को स्नाइपर से अधिक निशाने बनाने लगी तो सेना ने स्नाइपर राइफल की मदद मांगी थी। हमारे पास तकरीबन 150 राइफलें थीं, जो डीजीपी रहते एसओजी के लिए मंगाई गई थी। इस पर सेना को राइफलें देने के लिए तत्कालीन राजनीतिक नेतृत्व से बात की लेकिन उन्होंने कोई भी जवाब नहीं दिया। उन्होंने किसी का नाम तो नहीं लिया लेकिन इशारा पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की ओर था। हिजबुल आतंकी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद घाटी में अशांति के लिए पाकिस्तान के कहने पर महिला अलगाववादी आसिया अंद्राबी ने महिला पत्थरबाजों की फौज तैयार की थी। इसके लिए महिला कॉलेजों में खासतौर पर टीम तैयार की गई थी। पुलिस ने टीम में शामिल छात्राओं को समझाया। प्रिंसिपलों और अभिभावकों से बातचीत की। इस तरह धीरे-धीरे महिलाओं की ओर से पत्थरबाजी की घटनाओं पर अंकुश पाने में कामयाबी मिली।